इस्लामी: हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती संजरी रहमतुल्लाह अलैह का 812 वां उर्स पूरे भारत व दीगर ममालिक में ख़ूब धुम-धाम से मनाया गया। आइए जानते हैं कि कौन हैं ख़्वाजा ग़रीब नवाज़? बता दें कि 14 रजब 537 हिजरी बमुताबिक 1142 ई० में “सिजिस्तान या सिस्तान” के इलाका “संजर” में पैदा हुए। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का नाम “हसन” है और लक़ब “मोइनुद्दीन” “अताए रसूल” “सुल्तान उल हिंद” वग़ैरह है। अब्बू जान की तरफ से आपका नसब शहीद-ए-कर्बला “हज़रत इमाम हुसैन” और अम्मी जान की तरफ से आपका सिलसिला “हज़रत इमाम हसन” रज़ियल्लाहु अन्हु से जाकर मिलता है। ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की अम्मी जान हुजूर गौ़से पाक अब्दुल का़दिर जिलानी की चचाजा़द बहन हैं इस रिश्ते से ग़ौसे पाक ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह के “मामू” होते हैं। आपके दो साहबजा़दे पहला (अबुल ख़ैर हज़रत ख्वाजा फ़ख़रुद्दीन चिश्ती) दूसरा (हज़रत ख्वाजा हिसामुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह) हैं। और एक साहबजादी मुबारक बीवी हाफ़िज़ा जमाल र. अलैहा थीं। ख्वाजा साहब के दूसरी ज़ौजा से भी एक साहबजा़दे थे जिनका नाम (ख्वाजा अबू सईद ज़ियाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह) है। जिनका मजा़र शरीफ के अतराफ में आपकी कब्र मुबारक है। आपके वालिद सैय्यद ग्यासुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह थे जो इन्तेहाई मुक्तक़ी व परहेज़गार थे, और साहबे करामत बुज़ुर्ग थे। आपकी वालिदा माजिदा भी अक्सर औकात इबादत व रियाज़त में मसरूफ रहने वाली नेक सीरत खा़तून थीं। जब ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह 15 साल के हुए तो उनके वालिद साहब का वेसाल (इंतकाल ) हो गया। वरासत में एक बाग़ और पनचक्की मिला। आपने उसी को मआश का जरिया बनाया और खुद ही बाग की निगहबानी करते और दरख़्तों की आबयारी फरमाते। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ ने 15 साल की उम्र में इल्म हासिल करने के लिए सफर इख़्तियार किया और समरकंद में “हज़रत सैयदना मौलाना शरफुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह” की बारगाह में हाजिर होकर बकायदा इल्मे दीन का आग़ाज़ किया। पहले पहल क़ुरआन पाक हिफ्ज़ किया उसके बाद उन्हीं से दीगर उलूम हासिल किये। जैसे-जैसे इल्मेदीन सीखते गए शौक़े इल्म बढ़ता गया। लिहाजा़ इल्म की प्यास बुझाने के लिए बुखा़रा का रुख़ किया और शोहर-ए आफाक़ आलिमे दीन “हज़रत मौलाना हिसामुद्दीन बुखारी रहमतुल्लाह अलैह” की बारगाह में हाजिर हुए। और फिर उन्हें के साए में आपने थोड़े ही अर्से में तमाम दिनी उलूम की तकमील कर ली। इस कद्र आपने मजमूई तौर पर लगभग 5 साल समरकंद और बुखा़रा में इल्म हासिल करने के लिए क़याम फरमाया। इस अर्से में उलूमे जाहरी की तकमील तो हो चुकी थी मगर जिस तड़प की वजह से घर बार को खैर-बार कहा था उसकी तस्कीन अभी बाकी थी। आप किसी ऐसे माहिर की तलाश में निकल खड़े हुए जो दर्दे दिल की दवा कर सके। मुर्शिदे कामिल की जुस्तजू में बुखा़रा से सफर बांधा। रास्ते में जब निशापुर (खुरासन रज़वी/ईरान) के नवाही इलाके “हारून” से गुजर हुआ और मर्दे कलंदर कुत्बे वक्त “हजरत सैयदुना उस्मान हारुनी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह” का शोहरा सुना तो वह फौरन हाज़िरे खिदमत हुए और उनके दस्ते हक़ परस्त पर बैअत करके सिलसिला चिश्तिया में दाखिल हो गए। ख्वाजा गरीब नवाज बशारत के बाद हिंद रवाना हुए और समरकंद, बुखारा, उरूसुलबिलाद बग़्दाद शरीफ, निशापुर, तबरेज, असफहान, सब़्जवार , ख़ुरासान, खरकान , इस्तराबाद, बल्ख़ व ग़जनी से होते हुए हिंद के शहर अजमेर शरीफ (राजस्थान) पहुंचे। इस सफर में आपने सैकड़ो औलिया अल्लाह से मुलाक़ात की। ख्वाजा गरीब नवाज का मामूल था कि सारी-सारी रात इबादते इलाही में मसरूफ रहते। हत्ता कि ईशा की वज़ू से नमाजे़ फज्र अदा करते। और कभी-कभी दिन में दो कुरान पाक खत्म फरमा देते। दौराने सफर में भी कुरान की तिलावत जारी रहती। पड़ोसियों से हुस्ने श्लोक के बारे में मज़कूर है कि ख़्वाजा गरीब नवाज अपने पड़ोस का बहुत ख्याल रखा करते थे, उनकी खैर गिरी फरमाते, अगर किसी पड़ोसी का इंतकाल हो जाता तो उसके जनाजे के साथ जरूर तशरीफ ले जाते। और उसकी तदफीन के बाद जब लोग वापस हो जाते तो आप तन्हा उसकी कब्र के पास तशरीफ़ फरमा होकर उसके हक़ में मग़फिरत व निजात की दुआ करते। और सबर की तलकीन करते और उन्हें तसल्ली दिया करते। आपके अखलाक़ आलिया से मुतासिर होकर उम्दा हक के हासिल और पाक़ीज़ा सफात के पैकर हुए। और दिल्ली से अजमेर तक का सफर में लगभग 90 लाख अफ़राद इस्लाम से वाबस्ता हुए। ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ पर खौफ खुदा इस कदर ग़ालिब था कि आप हमेशा खशयते इलाही से कांपते और गिरिया वज़ारी करते। ख़ल्के ख़ुदा को खौफे-खुदा की तलकीन करते हुए इरशाद फरमाते की: “ए लोगों अगर तुम ज़ेरे ख़ाक सोए हुए लोगों का हाल जान लो तो मारे ख़ौफ के खड़े-खड़े पिघल जाओ”। जिस वक्त गौसे पाक ने बगदाद से इरशाद फरमाया “मेरा क़दम अल्लाह के हर वली के कांधे पर है” तो उस वक्त आपने जब यह सुना तो अपना सर झुका लिया और फरमाया “बल्कि आपके कदम मेरे सर आंखों पर है”। ख्वाजा ग़रीब नवाज़ के चंद मुरीद एक बार अजमेर शरीफ के मशहूर तालाब अना सागर पर ग़ुस्ल करने गए तो कुछ लोगों ने शोर मचाया कि यह “मुसलमान” हमारे तालाब को नापाक कर रहे हैं। तो वह हज़रात वापस लौटे और सारा माजरा ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की खिदमत में अर्ज कर दिया। आपने एक ख़ादिम को छागल (पानी रखने का बर्तन) देते हुए इरशाद फरमाया: “इसमें तालाब का पानी भर लो” ख़ादिम ने जूंही तालाब में पानी भरने के लिए बर्तन तालाब में डाला वह सारा पानी उस बर्तन में आ गया। वहां के लोग पानी न मिलने पर बेकरार हो गए और आपकी खिदमते सरापा करामत को हाजिर होकर फरियाद करने लगे। लिहाजा आपने ख़ादिम को हुक्म दिया कि “जाओ पानी वापस तालाब में उलट दो” खादिम ने हुक्म की तामील की और अना सागर की पानी को वापस लौटा दिया। 06 रजब 633 हिजरी ब मुताबिक 16 मार्च 1236 ईस्वी में सोमवार के दिन आपकी वेसाल मुबारक हुई। इसलिए हर साल 6 रजब को आपका उर्स मुकद्दस मनाया जाता है और इमसाल आपका 812वां उर्स मुकद्दस है।
हिंदू-मुस्लिम सिक्ख-इसाई सभी दर पे आते हैं, सबकी झोली भरते हैं ये दाता ही कुछ ऐसे हैं (ख़्वाजा ग़रीब नवाज़)
