रज़ा हुसैन क़ादरी
शबे बरात: हम सभी ग़ुस्ल (इस्लामी तरीक़े से नहाने) के बाद इबादत (नमाज़, क़ुरआन की तिलावत, तस्बीह व अज़कार, कब्रों पर फातिहा़ वग़ैरह) करें। सबसे पहले अपने गुनाहों से तौबा करें उसके बाद अपने मरने वालों के लिए बख्शिश की दुआ करें, अपने और दुसरे मुसलमान भाइयों के लिए मुसीबतों से छुटकारा की दुआ करें और हलाल रोज़ी रोटी की दुआ करें। अगर सच्चे दिल से इंसान दुआ करते वक्त तीन मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़ ले तो और बेहतर होगा और इंशाल्लाह दुआ क़ुबूल होगी।
क्योंकि……..
हज़रत अली से रवायत है, रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: “जब निस्फ (आधा) शाबान यानि 15 वीं शाबान की रात आए तो उस रात को क़याम (इबादत) करो और दिन में रोज़ा रखो। उस रात को अल्लाह तआला सूरज ग़ुरूब (डूबते) ही पहले आसमान पर नुज़ूल फरमा लेता है और सुबह सादिक तुलूअ् होने तक कहता रहता है:
1- क्या कोई मुझसे बख़्शिश मांगने वाला है कि मैं उसे माफ कर दूं?
2- क्या कोई रिज़्क़ (रोज़ी-रोटी) तलब करने वाला है कि उसे रिज़्क़ दूं।
3- क्या कोई (किसी बीमारी या मुसीबत में) मुब्तला है कि मैं उसे आफियत (निजात) अता कर दूं।
शबे बरात में तारों के बराबर बंदों की बख़्शिश
हज़रत काअ्ब रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि शाबान की पंद्रहवीं रात में अल्लाह तआला जिब्राइल अलैहिस्सलाम को जन्नत में भेजता है ताकि जन्नत सजाई जाए इसलिए कि आज की रात (आसमानों के तारों, दुनिया के रात व दिन, पेड़ के पत्तों, पहाड़ों के वज़न व रेत के ज़र्रों की तादाद के बराबर बंदो की बख़्शिश करुंगा। (जामा कबीर)