डंके की चोट पर कहो- हुसैन से मुहब्बत का हुक्म दुनियादार का नहीं बल्कि परवरदिगार का है: मौलाना फैय्याज बरकाती

रजा हुसैन क़ादरी

कुशीनगर: मुहर्रम का महीना शुरू है और जगह-जगह इमाम हुसैन र.अ. की याद में महफ़िल सजाया जा रहा है और जिक्रे शोहदाए कर्बला कर के लोगों के दिलों में इमामे हुसैन की मुहब्बत भरने का काम जारी है। कहीं – कही 1 से 10वीं मुहर्रम तक लगातार जिक्रे शोहदाए कर्बला होता है तो वहीं गांव मुहल्लों में एक या दो दिन का प्रोग्राम रख के इमाम हुसैन की शहादत को याद दिलाया जाता है। ऐसे ही जनपद कुशीनगर के अंतर्गत थाना पडरौना इलाक़े में जंगल शाहपूर रौजा में मुहर्रम की 7वीं शब (शनिवार) को जिक्रे हुसैन का प्रोग्राम मौजूदा इमाम हाफिज मुकम्मिल रज़ा के नेतृत्व में हुआ जिसमें खुसूसी तौर से आए हुए ख़तीब मौलाना फैय्याज बरकाती ने लोगों को नसीहत करते हुए बताया कि इसी मुहर्रम की 10 वीं तारीख़ को दुनिया की सबसे बड़ी शहादत हुई, जिसे शहीदे आज़म इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्ह ने निभाया। यानि दीन को बचाने सच्चाई व भलाई पर अड़े रहने, ख़ुदा व नबी के हुक्म को मानते हुए इमाम हुसैन ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी लेकिन उन यज़ीदीयों (बुराई करने वालों, जुल्म करने वालों) का साथ नहीं दिया। आगे कहा कि अगर कोई गुमराह व्यक्ति सवाल करे का ऐ लोगों तुम ने इमाम हुसैन की मुहब्बत में लोगों को जमा क्यों किया था? उनका जिक्र क्यों किया? उनकी महफ़िल क्यों सजाई? फक़ीरो को खाना क्यों खिलाया? शरबत क्यों पिलाई? अगर ये सवाल करे तो घबराने व परेशान होने की ज़रूरत नहीं बल्कि डंके की चोट पर कहना कि ऐ इंसानों कान खोलकर सुनो, बेशक हम हुसैन से मुहब्बत करने वाले हैं और इसलिए करते हैं कि अह्‌ले बैत (नबी के घर वाले) से मुहब्बत का हुक्म किसी दुनियादार का नहीं बल्कि परवरदिगार का है। साथ ही साथ क़ारी मुअज़्ज़म पुर्नवी ने इमाम हुसैन की मुहब्बत में अश्आ़र पढ़ते हुए कहा: “बहिश्त (जन्नत) जिसकी सल्तनत, हुसैन वो जनाब हैं। बराए कर्बला हुसैन, रब का इंतख़ाब है।। वो कल भी ज़िंदाबाद थे, ये अब भी ज़िंदाबाद हैं। हुसैन लाजबाव थे, हुसैन लाजवाब हैं।।”

बादहू हाफ़िज़ शाकिर शाह ने ” साबिरों (सब्र करने वाले) के साथ अल्लाह है” की मौज़ूअ पर ख़ेताब करते हुए लोगों को इमाम हुसैन की सब्र को बताया और ख़ुद भी सब्र करने का सबक़ दिया। इसके बाद मौलाना मेराज शम्सी ने इमाम हुसैन के नाना की मुहब्बत में मदीना जाने की तसव्वुर में नातख्वानी किया। आख़िर में लोगों को कर्बला की दास्तान, इमाम हुसैन की शहादत वग़ैरह बयान कर लोगों के दिलों में ज़ज्बा व जुनून भरने व हक़ पर अड़े रहने का काम किया गया। और इस्लामी शिक्षा (इल्म) पर ज़ोर देते हुए लोगों को अपने औलादों को इमाम हुसैन का मीशन ले कर चलने के लिए प्रभावित किया गया। बादहू अपने मुल्क की तरक्की, आपसी भाईचारा क़ायम रखने के साथ दुनिया की बुराई से बचाने व इमाम हुसैन की जज़्बा – जुनून पाने की दुआ की गई। उक्त अवसर पर हाफ़िज़ खुर्शीद आलम, हाफ़िज़ रज़ा हुसैन क़ादरी, हाफ़िज़ मसरूफ़ रज़ा, अरमान रज़ा, नूरमुहम्मद, इद्रीस मंसुरी, मुमताज मंसुरी, दारोगा मंसुरी, तजीर आलम सिद्दीकी, शान मुहम्मद, नसरुद्दीन मंसुरी, हबीब मंसूरी, अहमद अली, आज़ाद आलम, नसीर आ़लम, गुड्डू मंसूरी, रिज़वान मंसूरी, जुल्फिकार मंसूरी, साजिद अली, सरफराज़ , अफ़रोज़, नौशाद अली, नूरुद्दीन रज़ा, वसीम, जुनैद, सरताज अली, नसीम रज़ा व तमाम ग्रामवासी हुसैनी के रूप में मौजूद रहे।

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