रजा़ हुसैन क़ादरी
कुशीनगर: रमज़ान के इस मुबारक महीना में आखरी दस दिनों के लिए एअ्तेकाफ करना भी सुन्नते किफाया है। अगर पूरे गांव से एक ने भी मस्जिद में एअ्तेकाफ कर लिया तो सब बरी हुए वरना सभी जवाब देही (तलबगार) होंगे ।
एअ्तेकाफ की तीन किस्में हैं:
पहला: वाजिब (मिन्नत मांगने व ज़बान से कहने पर)।
दूसरा : सुन्नते किफाया (रमज़ान के आख़िरी अशरा में)।
तिसरा: मुस्तहब या ग़ैर मुअक्किदा (जब भी मस्जिद में दाखिल हो एअ्तेकाफ की नियत कर ले)।
सुन्नते किफाया : रमज़ान के आख़िरी अशरे में यानि आज (20वीं रमज़ान) को सूरज गुरूब (डूबने) से पहले मस्जिद में एअ्तेकाफे सुन्नत की नियत से दाख़िल होना है और शव्वाल (ईद) की चांद होने के बाद मस्जिद से बाहर निकलने का हुक्म है। ये याद रहे कि इस एअ्तेकाफ के लिए रोज़ा रखना शर्त है, लेहाज़ा ऐसा आदमी ही मोअ्तकिफ बने जो रोज़ादार हो। तो जो बंदा इस सुन्नते एअ्तेकाफ को इबादतों की हालत में पूरा करेगा उसे 2 हज व 2 उमरे का सवाब मिलेगा।
मस्जिद से बाहर निकलने के 2 उज्र/वजह:
1- हा़जते तबई : जैसे – पख़ाना, पेशाब, वज़ू व ग़ुस्ल वग़ैरह।अगर मस्जिद में वज़ू व ग़ुस्ल करने का इंतजाम हो तो बाहर जाने का हुक्म नहीं।
2- ह़ाजते शरई : जैसे – ईद, जुम्आ या आज़ान के लिए मिनारा पर जाना वग़ैरह। मोअ्तकिफ क़ो चाहिए कि मस्जिद में दाखिल होने से पहले किसी इमाम/आ़लिम से एअ्तेकाफ के मसाइल को जान कर मुकम्मल तरीक़े से एअ्तेकाफ पूरा करने की कोशिश करें।
एअ्तेकाफ के हवाले से कुछ हदीसे भी हैं जो नीचे हैं:
हज़रत आईशा सिद्दिक़ा र.अ. से मरवी ” हुज़ूर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम रमज़ान के आख़िरी अशरे में एअ्तेकाफ फरमाया करते थे।
बहीक़ी हज़रत इमाम हुसैन र.अ. से मरवी कि हुज़ूर फरमाते हैं ” जिस ने रमज़ान में 10 दिनों का एअ्तेकाफ कर लिया तो ऐसा है जैसे 2 हज व 2 उमरे किए। ”