कुशीनगर: इस्लाम एक ऐसा मजहब है जिसमें दुनिया की तमाम बुराइयों से दूरी बनाने व अच्छाई के तरफ़ मायल का हुक्म देता है। बता दें कि कुछ बुराइयां तन्हाई (अकेले) में जैसे – गाली गलौज, बुराई, चुग़लख़ोरी, हरामखोरी, चोरी व ज़िना आदि हैं। तो कुछ बुराइयां सामाजिक तौर पर जैसे – समाज के अंदर गाना, बजाना, नाचना या कोई भी बुरा काम करना शामिल है। और इस्लाम इन सारी बुराइयों को सख्ती से मना करता है। आमतौर पर तन्हाई में बुराइयां करने से सिर्फ एक आदमी का नुक़सान होता है तो वहीं सामाजिक गुनाहों से मुआशरे में ज्यादा बुराइयां फैलती है व पूरा समाज बदनाम होता है। इसलिए दीन के रहनुमाओं (ओलमा) का इत्तेफ़ाक है कि सबसे ज्यादा सामाजिक बुराइयां रोकने की ज़रूरत है जिससे हमारा पूरा समाज बुराई से बच सके। यही वजह है कि हर जगह इमामे मस्जिद के तरफ़ से सामाजिक बुराइयों (नाच , बाजा, ऑर्केस्ट्रा, भांगड़ा आदि) पर रोक है। जो दीन के मुताबिक अपना काम करते हैं वो तो ठीक है, लेकिन जो भी अकड़ दिखाते हुए बुराइयों का आयोजन करते हैं उन पर सख्त कार्रवाई (दंड लेना, बॉयकॉट करना, कुजात छांटना, तौबा कराना) वगै़रह की जाती है। इसी ओलमा की पहलू पर अ़मल करते हुए ज़िला कुशीनगर में स्थित छोटी मस्जिद सोहरौना खिरकिया में 10 अप्रैल को वलीमा में नाच, बाजा के आयोजन पर मौजूदा इमाम हाफिज़ रज़ा हुसैन क़ादरी ने उन नचनिया-बजनिया की बॉयकॉट करने की बात कही और आगे कहा कि ऐसे दरवाजे पर कभी फातिह़ा, मीलाद, निकाह़ या जनाज़ा में हम शामिल नहीं होंगे और अगर दुसरा मौलवी आता है तो उसको भी बुराइयों में मदद करने वाला माना जाएगा। वहीं कुछ ज़िम्मेदार लोगों ने कहा कि ऐसे घर से इमाम के साथ-साथ हमलोगों का भी कोई ताल्लुक नहीं होगा, यानि ना तनख्वाह लिया जाएगा और ना ही ऐसे घरों में इमाम का कभी आवागमन होगा।
नचनिया, बजनिया का बॉयकॉट, ना लेंगे तनख्वाह ना पढ़ाएंगे निकाह़
