भारत: इस्लाम एक ऐसा मज़हब है जिसमें हर त्यौहार से पहले चांद का इंतजार किया जाता है उसके बाद त्यौहार का समय फिक्स किया जाता है। इस्लाम में पांच महीना (शअ्बान, रमज़ान , शव्वाल, ज़िलकअ्दा व जिल्हिज्जा) का चांद देखना वाजिब है। बता दें कि ईद-उल-फितर के बाद से ही लोग बकरा ईद के मुंतजिर थे और ऐसा समय आ गया कि जिल्हिज्जा का चांद नज़र आया और इसी महीने के 10 तारीख़ को ईद-उल-अज़हा की नमाज़ अदा की जाती है व 10,11,12 को खुदा की राह में जानवर कुर्बान कर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत अदा किया जाता है जिसका सवाब जानवर के सिंघ, खूर व हर बाल के बराबर बताया गया है। खुलासा ये है कि अंग्रेजी तारीख़ के अनुसार 07/जून/2025 को ईद-उल-अज़हा की नमाज़ अदा की जाएगी व 7,8,9 जून 2025 को जानवर कुर्बान किया जाएगा।

चांद के बाद न करें ये काम, तो मिलेगा कुर्बानी का सवाब।
बता दें कि उम्मुल मोअ्मिनीन उम्मे सलमा से रावी कि हुज़ूर ने फ़रमाया “जिसने जिलहिज्जा का चांद देख लिया और उसका इरादा कुर्बानी करने को है तो जब तक कुर्बानी ना कर ले बाल और नाखुन ना तराशे (काटे)।” और हुज़ूर ने ये भी फ़रमाया कि ” अगर किसी के पास कुर्बानी कराने की हैसियत नहीं हो तो, जब से जिलहिज्जा का चांद हो तब से बकरा ईद तक नाख़ून या कोई बाल न तराशे (काटे) तो उसको भी कुर्बानी कराने का सवाब हासिल होगा। इंशाअल्लाह।