रज़ा हुसैन क़ादरी
कुशीनगर: खास जानवर को खास दिन में तक़र्रुब की नियत से ज़बह करना कुर्बानी है , कभी अज़ही़हा भी कहा जाता है। कुर्बानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है व इस उम्मत के लिए क़यामत तक बाक़ी रखी गई है, व नबी करीम मुहम्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को भी कुर्बानी करने का हुक्म दिया गया।
कलामे मुकद्दस में ख़ुदा का फरमान है “फसल्लि लिरब्बि-क वन्ह़र” (अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो व कुर्बानी करो)। इसके अलावा कई अह़ादीस भी हैं:-
1- हुज़ूर ने फ़रमाया कि 10 वीं जिलहिज्जा के दिन इब्ने आदम (आदम के औलाद) का कोई अ़मल खुदा के नज़दीक खून बहाने से प्यारा नहीं, और वह जानवर कयामत के दिन अपने सिंग, खूर व बालों के साथ आएगा और कुर्बानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले खुदा के नज़दीक मक़ामे क़ुबूल तक पहुंच जाता है इसलिए इस (कुर्बानी) को ख़ुशी दिल से करो।
2- हुज़ूर ने फ़रमाया जिसने खुशी दिल से तालिबे सवाब हो कर कुर्बानी की वह आतिशे जहन्नम से रोक हो जाएगा।
3- हुज़ूर ने फ़रमाया जो रुपया ईद के दिन कुर्बानी में खर्च किया गया उससे ज्यादा कोई रुपया प्यारा नहीं।
4- हुज़ूर ने फ़रमाया जिसमें हैसियत हो और कुर्बानी न करे , वह हमारी ईदगाह के क़रीब न आए।
5- जिसने जिलहिज्जा का चांद देख लिया और कुर्बानी करने का इरादा हो तो जब तक कुर्बानी न कर ले बाल व नाख़ून को ना कटवाएं।
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